कहा गुन बरनौं स्याम, तिहारे।
कुबिजा, विदुर, दीन द्विज, गनिका सबके काज सँवारे।
जज्ञ-भाग नहिं लियौ हेत सौं रिषिपति पतित बिचारे।
भिल्लिनि के फल खाए भाव सौं खाटे-मीठे खारे।
कोमल कर गोवर्धन धारयौ जब हुते नंद-दुलारे।
दधि-मिस आपु बँधायौ दाँवरि, सुत कुबेर के तारे।
गरुड़ छाँड़ि प्रभु पायँ पियादे गज-कारन पग धारे।
अब मोसों अलसात जात हौ अधम-उघारनहारे।
कहँ न सहाय करी भक्तनि की, पांडव जरत उबारे।
सूर परी जहँ बिपति दीन पर, तहाँ बिघन तुम टारे।।25।।