कहावत ऐसे त्‍यागी दानि -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग नट



कहावत ऐसे त्‍यागी दानि।
चारि पदारथ दिए सुदामहिं अरु गुरु के सुत आनि।
रावन के दस मस्‍तक छेदे, सर गहि सारँग-पानि।
लंका दई विभीषन जन कौं, पूरवली पहिचानि।
विप्र सुदामा कियौ अजाची, प्रीति पुरातन जानि।
सूरदास सौं कहा निहोरौ नैननि हूँ की हानि।।।135।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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