कहाँ रह्यौ मेरौ मनमोहन।
वह मूरति जिय तै नहिं बिसरति, अंग अंग सब सोहन।।
कान्ह बिना गोवै सब व्याकुल, को ल्यावै भरि दोहन।
माखन खात खवावत ग्वालनि, सखा लिए सब गोहन।।
जब वै लीला सुरति करति हौ, चित चाहत उठि जोहन।
‘सूरदास’ प्रभु के बिछुरे तै, मरियत है अति छोहन।। 3137।।