कहति जसोदा बात सयानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


कहति जसोदा बात सयानी।
भावी नहीं मिटै काहू की, करता को गति जाति न जानी।।
जन्म भयौ तब तैं ब्रज हरि कौ, कहा कियौ करि करि रखबानी।
कहाँ कहाँ तैं स्याम न उबरयौ किहिं राख्यौ तिहि अवसर आनी।।
केसी संकटऽरु वृषभ पूतना, तृनावर्त की चलति कहानी।
को मेरैं पछिताइ मरै अब, अनजानत सब करी अयानी।।
लै बलाइ छाती सौं लाए, स्याम राम हरषित नंद-रानी।
भूखे गए प्रात अधखातहिं तातैं आजु बहुत पछितानी।।
रोहिनि लियौ न्हवाइ दुहुँनि कौ, भोजन कौं माता अकुलानी।
ल्याइ परसि दुहुँनि की थारी, जेंवत बल मोहन रुचि मानी।।
माँगि लियौ सीतल जल अँचयौ, मुख धोयौं चुरुवनि लै पानी।
बीरा खात दोउ बीरा जब, दोउ जननी मुख देखि सिहानी।।
रत्न-जटित पलिका पर पौंढ़े, बरनि न जाइ कृष्न-रजधानी।
सूरदास कछु जूठनि माँगत, तब पाऊँ कहि दीजै बानी।।1398।।

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