कर्म राज्य से उच्च स्तर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व

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राग भैरव - ताल कहरवा


‘कर्म-राज्य’ से उच्च स्तर पर सुन्दर ‘भाव-राज्य’ जगमग।
‘तत्वज्ञान’ उच्चतर उससे, कष्टसाध्य अति ‘राज्य’ सुभग॥
परम-’भाव’ का है उससे भी परे ‘राज्य’ अतिशय उज्ज्वल।
होती जहाँ ‘प्रिया-प्रियतम की लीला’ मधुर, अचिन्त्य, अमल॥
जिसकी पद-नख-‌आभा अक्षर ब्रह्म, ब्रह्म का जो आधार।
उसी परात्पर की लीला का संतत होता जहाँ विहार॥
सदा उछलता रहता वह लीला का शान्त मधुर सागर।
विविध भाव-लहरें मनहर बन, स्वयं खेलते नट-नागर॥
छिपे ज्ञान-विज्ञान देखते जहाँ मधुर लीला-रस-रंग।
होते परम प्रफुल्लित पाकर अपने दुर्लभ फल का संग॥
प्रकट नहीं होते, करते वे नहीं कभी लीला-रस-भंग।
उठती वहाँ अलौकिक लीला की नित मधुर अनन्त तरंग॥
रस वह सभी रसों का उद्‌‌गम, नित्य परम रस मधुर महान।
महाभाव-परिनिष्ठित नित्य-निरतिशय रसमय श्रीभगवान॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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