करत कान्‍ह ब्रज धरनि अचगरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्‍हरौ



करत कान्‍ह ब्रज धरनि अचगरी।
खीझति महरि कान्‍ह सौं पुनि-पुनि, उरहन लै आवति हैं सगरी।
बड़े बाप के पूत कहावत, हम वै बास बसत इक वगरी।
नंदहु तैं ये बड़े कहैहैं फेरि बसैहैं यह ब्रज नगरी।
जननी कैं खीझत हरि रोए, झूठहिं मोहिं लगावति धगरी।
सूर स्‍याम मुख पोंछि जसोदा, कहति सबै जुवती हैं लँगरी।।319।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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