करति हैं हरि चरित ब्रज नारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


करति हैं हरि-चरित ब्रज-नारि।
देखहीं अति बिकल राधा, यहै बुद्धि बिचारि।।
इक भई गोपाल कौ बपु, इक भई बनवारि।
इक भई गिरिधरन समरथ, इक भई दैत्यारि।।
एक इक भईं धेनु-बछरा, इक भई नँदलाल।
इक भई जमला-उधारन, इक त्रिभंग रसाल।।
इक भई छबि-रासि मोहन, कहति राधा नारि।
इक कहति उठि मिलहु भुज भरि, सूर-प्रभु की प्यारि।।1121।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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