करतल साभित बान धनुहियाँ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राम बिलावल
शर-क्रीड़ा


  
करतल सोभित बान धनुहियाँ।
खेलत फिरत कनकमय आँगन, पहिरे लाल पनहियाँ।
दसरथ कौसिल्या कै आगै, लसत सुमन की छहियाँ।
मानौ चारि हंस सरबर तै बैठे साइ संदेहियाँ।
रधुकुल-कुमुद-चंद चितरमनि, प्रगटे भूतल महियाँ।
आए ओप देन रघुकुल कौं, आनंद-निधि-सब कहियाँ।
सुख यह तीनि लोक मैं नाहीं, जो पाए प्रभु पहियाँ।
सूरदास हरि बोलि भक्ति कौं, निरवाहत गहि बहियाँ।।19।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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