करणां सुणि स्‍याम मेरी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन

राग पीलू


करणाँ सुणि स्‍याम मेरी ।
मैं तो होइ रही चेरी तेरी ।। टेक ।।
दरसण कारण भई बावरी, विरह बिथा तन घेरी ।
तेरे कारण जोगण हूँगी, दूँगी नग्र बिच फेरी ।
कुंज सब हेरी हेरी ।
अंग भभूत गले म्रिघ छाला, योतन भसम करूँरी ।
अजहुँ न मिल्‍या राम अबिनासी, बन बन बीच फिरूँरी ।
रोऊँ नित टेरी टेरी ।
जन मीराँ कूँ गिरधर मिलिया, दुख मेटण सुख भेरी ।
रूम रूम साता भइ उर में, मिटि गई फेरा फेरी ।।94।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. करणाँ = करुण प्रार्थना। सुणि = सुनो। जोगण = जोगिन, संन्यासिनी। नग्र = नगर। म्रिगछाला = मृगछाला। योतन.. करूँरी = इस शरीर पर भस्म रमाऊँगी। टेरी टेरी = पुकार पुकार कर। भेरी = पहुँचाने वाले। रूम रूम = रोम रोम, सर्वांग। साता = शांति। फेराफेरी = आवागमन।

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