कमल के भार-दधि भार-माखन भार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौड़



कमल के भार-दधि भार-माखन भार,
लिए, सब ग्वार, नृप-द्वार आए।
तुरतहिं टोरि, गनि, कोरि सकटनि जोरि,
ठाढ़े भए पौरिया तब सुनाए।
सुनत यह बात, अतुरात और डरत मन,
महल तैं निकसि नृप आपु आए।
देखि दरबार, सब ग्वार नहिं पार कहुँ,
कमल के भार सकटनि सजाए।
अतिहिं चक्रित भयौ, ज्ञान हरि हरि लयौ,
सोच मन मैं ठयौ कहा कीन्हौ!
गौप-सिरमौर नृप ओर, कर जोरि कै,
पुहुप कैं काज प्रभु पत्र दीन्हौ।
यह कह्यौ नंद, नृप बंदि, अहि-इंद्र पैं,
गयौ मेरौ नंद, तुव नाम लीन्हौ।
उठयौ अकुलाइ, डरपाइ तुरतहिं धाइ,
गयौ पहुँचाइ तट आइ दीन्हौ।
यह कह्यप स्याम-बलराम, लीजौ नाम,
राज कौ काज यह हमहिं कीन्हौ।
और सब गोप आवत जात नृप बात कहत,
सब सूर मोहिं नहीं चीन्हौ।।584।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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