कमल-नैन हरि करौ बियारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ



कमल-नैन हरि करौ बियारी।
लुचुई लपसी, सद्य जलेबी, सोइ जेंवहु जो लगै पियारी।
घेवर, मालपूआ, मोतिलाडू, सधर खजूरी सरस सँवारी।
दूध बरा, उत्तम दधि बाटी, दाल-मसूरी की रुचि न्यारी।
आछौ दूध औटि धौरी कौ, लै आई रोहिनि महतारी।
सूरदास बलराम स्याम दोउ जेंवहु जननि जाइ बलिहारी।।227।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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