कमल-नैन ससि-बदन मनोहर, देखौ हो पति अति विचित्र गति।
स्याम सुभग तन, पीत-बसन-दुति, सोहै वनमाला अद्भुत अति।
नव-मनि-मुकुट-प्रभा अति उद्दित, चित्त-चकित अनुमान न पावति।
अति प्रकास निसि विमल, तिमिर छर, कर मलि-मलि निज पतिहिं जगावति।
दरसन-सुखी, दुखी अति सोचति, षट सुत-लोक-सुरति उर आवति।
सूरदास प्रभु होहु पराकृत, अस कहि भुज के चिह्न दुरावति॥7॥