कमलनैन कान्हर की सोभा, नैननि तै न टरै।
ऊधौ आए जोग सिखावन, को जजाल करै।।
जब मोहन गाइनि लै आवत, ग्वालनि संग धरै।
बलदाऊ अरु संग सखा सब, कहि कैसै बिसरै।।
बंसीवट जमुना तट ठाढ़े, मुरली अधर धरै।
सुख समूह विनोद जे कीन्हे, को इहिं ढरनि ढरै।।
ब्रजवासी सब भए उदासी, को संताप भरै।
'सूरदास' के प्रभु बिनु ऊधौ, को तन तपति हरै।।3581।।