कभी मत मिलें, मिले रहें नित -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग भीमपलासी - तीन ताल


कभी मत मिलें, मिले रहें नित, पर स्मृति रहती नित्य नवीन।
स्मृति की परम मधुरता पल-पल बढ़ती, होती कभी न छीन॥
स्मृति ही तन-धन, स्मृति ही जीवन, स्मृति में ही मन रहता लीन।
प्राणरूप ये, स्मृति-जल-धारा से ही बचे हु‌ए हैं मीन॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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