कभी न होता, कभी न होगा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

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राग लावनी - तीन ताल


कभी न होता, कभी न होगा मेरा-तेरा सुखद बिछोह।
तो भी नित मिलनेच्छा बढ़ती रहती, यह कैसा प्रिय मोह॥
नित्य मिलन-‌अनुभूति साथ ही, तदपि दीखता कभी बियोग।
नित्य मिलन में अमिलन दिखता, अमिलन में दिखता संयोग॥
रहती लगी प्रतीक्षा मधुर स्मृतियुत, बढ़ता रहता वेग।
बढ़ती असहिष्णुता उारोर, बढ़ता मन का संवेग॥
मिलन-विरह के इसी परम सुख में रहता मन सदा विभोर।
अविरत चलता रहता यह नित शुचि प्रवाह अनन्त की ओर॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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