कब लगाऊँगी अगर-मृगमद -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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तर्ज गजल - ताल रूपक


कब लगाऊँगी अगर-मृगमद-चु‌आ-चन्दन शरीर।
कब चढ़ाऊँगी सुमन सुरभित चरण, होकर अधीर॥
फट रहा है हृदय मेरा, जल रही ज्वाला अमित।
कहाँ जाऊँ ? क्या करूँ ? पाऊँ कहाँ प्रियतम अजित ?’॥
आ गये नटवर अचानक लिये मुरली मधुर कर।
वितरते आनन्द, छायी मुसकराहट मृदु अधर॥
देखते ही मिट गये संताप तन-मन के सकल।
सुख-सुधोदधि उमड़ आया, हो गया जीवन सफल॥
ली तुरंत मधुर हृदय में मिली खो‌ई निधि ललाम।
सह न पायी तनिक-सा अवकाश, भूली निरख श्याम॥
हु‌ई विस्मृति सकल जगकी, ’मैं’ तथा ’मेरा’ गये।
एक लीलामय मधुर रस-रसिक रसनिधि रह गये॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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