कब रागि फिरिहौं दीन बह्यौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राम धनाश्री




कब रागि फिरिहौं दीन बह्यौ ?
सुरति-सरित-भ्रम-भौर-लोल मैं, मन परि तट न लह्यौ।
बात चक्र बासना-प्रकृति मिलि, तन-तृन तुच्‍छ गह्यौ।
उरझयौ बिबस-कर्म निर अंतर, स्रमि सुख-सरनि चह्यौ।
बिनतीं करत डरत करुनानिंधि, नाहिंन परत रह्यौ।
सूर करनि तरु रच्‍यौ जु निज कर, सो कर नाहिं गह्यौ।।162।।

इस पद के अनुवाद के लिए यहाँ क्लिक करें
Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः