कबहुँ कबहुँ आवत ये -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान


कबहुँ कबहुँ आवत ये, मोहिं लेन माई।
आवतही यहै कहत, स्याम तोहिं बुलाई।।
नैकहूँ न रहत बिरमि, जात तहाँ धाई।
मानौ पहिचानि नही, ऐसै बिसराई।।
उनको सुख देत, मोहिं दहिबे कौ पाई।
'सूर' स्याम-संगहिं-सँग, बासर निसि जाई।।2353।।

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