कपट करि ब्रजहिं पूतना आई।
अति सुरूप, विष अस्तन लाए, राजा कंस पठाई।
मुख चूमति, अरु नैन निहारति, राखति कंठ लगाई।
भाग बड़े तुम्ह रे नँदरानी, जिहिं के कुँवर कन्हाई।
कर गहि छीर पियावति अपनौ, जानत केसवराई।
बाहर ह्वै कै असुर पुकारो, अब बलि लेहु छुड़ाई।
गइ मुरछाइ, परी धरनी पर, मनौ भुवंगम खाई।
सूरदास प्रभु तुम्हारी लीला, भक्तनि गाइ सुनाई।।52।।