कन्हैया हालरौ हलरोइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री



कन्हैया हालरौ हलरोइ।
हौं वारी तब इंदु-वदन पर, अति-छबि अलस भरोइ।
कमल-नयन कौं कपट किए माई, इहिं ब्रज आवै जोइ।
पालागौं बिधि ताहि बकी ज्यौं, तू तिहिं तुरत बिगोइ।
सुनि देवता बड़े, जग-पावन, तू पति या कुल कोइ।
पद पूजिहौं, बेगि यह बालक करि दै मोहिं बड़ोइ।
दुतिया के ससि लौं बाढ़ै सिसु, देखै जननि जसोइ।
यह सुख सूरदास कै नैननि, दिन-दिन दूनौ होइ।।56।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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