कन्हाई से प्रेम कैसे करें 4

कन्हाई से प्रेम कैसे करें?

श्रीसुदर्शन सिंहजी 'चक्र'

बात यह है कि कन्हाई हृषीकेश है, अन्तर्यामी है और संसार बाहर है। अन्तर्मुख और बहिर्मुख एक साथ हुआ नहीं जा सकता। अतः संसार तथा संसार की स्थिति के सम्बन्ध में हृदय के पूरे बल से कहना पड़ता है-

‘बाक़ी न मैं रहूँ, न मेरी आरजू रहे।’

तब यह कहना सार्थक होता है -

‘मालिक तेरी रज रहे और तू ही तू रहे।’

‘कन्हाई से प्रेम करना है - करना ही है। संसार का सुख-वैभव रहना हो तो रहे और न रहना हो तो कल जाने के बदले भले आज ही चला जाय; किंतु यह प्रेम कैसे प्राप्त हो? यह कैसे जागे?’
आपके मुख में घी-शक्कर। आप अब भी कहते हैं कि आप में कन्हाई का प्रेम नहीं है? जो संसार में सब ओर से निरपेक्ष हो गया, उसका प्रेम कहाँ है? प्रेमहीन कोई प्राणी होता नहीं और संसार में कहीं उसका प्रेम रहा नहीं, तब उसका प्रेम गया कहाँ?
‘लेकिन मुझ में प्रेम तो नहीं है।’
आपकी यह अनुभूति धन्य है। प्यास ही प्रेम का स्वरूप है। प्रेम में तृप्ति तो है ही नहीं। ‘मुझ में प्रेम है’ यह अनुभूति किसी प्रेमी को कभी होती नहीं। यदि किसी को अनुभव होता है कि मुझ में प्रेम है तो समझना होगा कि यह पतनोन्मुख है। इसका रहा-सहा प्रेम भी अब टिकने वाला नहीं है।
प्रेम की पहिचान एक दूसरा ही अनुभव है। जिसमें प्रेम है, उसका क्षण-क्षण का, नित्य-नित्य का अनुभव बन जाता है - ‘मुझ में तो प्रेम का लेश भी नहीं है और न मैं कन्हाई का अनुग्रह पाने का अधिकारी हूँ। मुझ-जैसे की तो उन्हें अत्यन्त उपेक्षा करनी चाहिये; किंतु ये व्रज राजकुमार इतने भोले हैं कि इन्हें नीरस व्यक्ति की भी परख नहीं। ये मुझसे अतिशय प्रेम करते हैं। इनका मेरे प्रति बहुत अधिक पक्षपात है।’
प्रेम का पिता है विश्वास और माता है निरपेक्षता। संसार में सब ओर से निरपेक्ष होकर जो कन्हाई पर ही विश्वास करता है, उन्हें कन्हाई का प्रेम प्राप्त होता है और कन्हाई का प्रेम तो कन्हाई के मिलने से बहुत-बहुत अधिक महान है।
एक सहायक साधन की बात और। हमारे मन में राग या द्वेष बहुत कुछ सुन-सुनकर उत्पन्न होता है। अतः कन्हाई का प्रेम पाना है तो इनके गुण, इसके चरित, इसके माहात्म्य का, इसकी कथा का बार-बार श्रवण करना चाहिये। यह श्रवण जब सुलभ न हो तो इस प्रकार के ग्रन्थों का नियमित पाठ - अध्ययन करना चाहिये। पुस्तक पढ़ना भी श्रवण का ही विषय माना जाता है और प्रेम गुण-श्रवण की बार-बार आवृत्ति से जाग्रत होता है, यह सब शास्त्र, सन्त कहते-मानते हैं।


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