कन्हाई से प्रेम कैसे करें 3

कन्हाई से प्रेम कैसे करें?

श्रीसुदर्शन सिंहजी 'चक्र'

कुछ थोड़े अपवाद होते हैं। अतीत में हुए हैं और कभी भी हो सकते हैं। लैला के प्रति मजनू का प्रेम - लेकिन ऐसा प्रेम जब स्थायी और अनन्य हो जाता है तो दिव्य हो जाता है। वह जिसमें होता है, उसकी देहासक्ति तथा समस्त क्षुद्र दुर्बलताओं को समाप्त कर देता है। उसमें केवल अविधिपूर्वक भ्रान्ति रहती है, जो किसी भी क्षण किसी संत-सत्पुरुष का अनुग्रह मिलते ही नष्ट हो जाती है। इसीलिये सूफी संत-मत में स्थिर लौकिक प्रेम की बहुत महत्ता है। उसे लगभग प्राथमिक आवश्यकता मान लिया गया है।

कन्हाई से प्रेम करना है तो लोक में कहीं, किसी से भी प्रीति की कैसे की जा सकती है। एक ही समय, एक साथ आप पूर्व और पश्चिम कैसे चल सकते हैं। स्वार्थ और परमार्थ एक साथ सधा नहीं करता।

‘मुझे लोक में उन्नति-सफलता भी चाहिये और परमार्थ भी’ एक ने लिखा। उनको उत्तर भला मैं क्या देता। जो एक साथ ऊपर-नीचे दोनों ओर दौड़ना चाहता है, वह गिरेगा। उसके नीचे ही लुढ़कने की सम्भावना अधिक है।

मैं नहीं कहता कि संसार का सुख-वैभव और कन्हाई की प्रीति एक व्यक्ति को प्राप्त नहीं होती। सुदामा को स्वयं श्रीकृष्ण ने अपार वैभव दिया। महाराज जनक, चक्रवर्ती महाराज दशरथ अथवा व्रजराज नन्दबाबा के पास ऐश्वर्य कम नहीं था और इनमें प्रीति कम थी, यह तो सोचा भी नहीं जा सकता।

बाहर की स्थिति क्या है, यह महत्त्व की बात नहीं है। बाहर कोई चक्रवर्ती सम्राट भी हो सकता है और नितान्त कंगाल भी। महत्त्व की बात यह है कि उसके हृदय का राग कहाँ है। आप चाहते क्या हैं? कन्हाई का प्रेम और लौकिक वस्तु या स्थिति एक साथ चाही नहीं जा सकती। जब कोई दोनों को चाहता है तो इसका अर्थ होता है कि वस्तुतः उसे संसार ही चाहिये। श्याम के प्रेम को चाहना मात्र औपचारिकता है।

एक परिचित विद्वान कहा करते हैं - ‘लोग तो चाहते हैं कि संसार का सब सुख-सम्मान बना रहे और एक जेब में भगवान भी आ जायँ। वे भगवान को - भगवत्प्रेम को भी अपने अहंकार का आभूषण बनाना चाहते हैं और भगवान आभूषण बना नहीं करते।’ कन्हाई का - कन्हाई के प्रेम का भी एक स्वभाव है कि जब ये आते हैं, संसार को नीरस कर देते हैं। तब भले सम्पत्ति, परिवार और प्रतिष्ठा बनी रहे, इनके रहने में कोई रस - कोई सुख नहीं रह जाता। ये रहें ही, ऐसा थोड़ा भी आग्रह नहीं करता।

श्री रघुनाथ के वन में चले जाने पर महाराज दशरथ प्राण ही नहीं रख सके। कन्हाई के मथुरा जाने पर व्रज के लोगों की क्या दशा हुई? किसे भगवत्प्रेम प्राप्त हुआ जिसकी तनिक भी रुचि-प्रीति संसार के वैभव या भोगों में थी? संसार का चाहे जितना वैभव प्राप्त हो, कन्हाई का प्रेम आयेगा तो सबको नीरस बना ही देगा।

कन्हाई से प्रेम करना है? तब संसार से निरपेक्ष हो जाना पड़ेगा। तब यह रहे - यह न रहे, यह मिले - यह न मिले, अमुक सुखी-सन्तुष्ट रहे - अमुक दूर बना रहे, जीवन में ऐसी परिस्थिति रहे - ऐसी न रहे, यह सब आग्रह सर्वथा छोड़ देना होगा।


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