कन्हाई की तन्मयता 2

संत सूरदास का वात्सल्य प्रेम


मैया पुकारती रही, पुकारती रही और अन्त में समीप आ गयी यह देखने कि उसका लाल कर क्या रहा है। क्यों सुनता नहीं। अन्ततः अब आतप में कुछ प्रखरता आने लगी है। इस धूप में तो इस सुकुमार को नहीं रहने दिया जा सकता। कटि में केवल रत्नमेखला और कटिसूत्र है। कछनी तो इसे उत्पात लगती है। उसे आते ही खोलकर फेंक दिया था। कुछ पीछे रेत पर पड़ी है वह पीतकौशेय कछनी। बार-बार ढीली होने वाली कछनी को यह कब तक सभालता? चरणों में मणि-नूपुर हैं। करों में कंकण हैं। भुजाओं में अंगद हैं। कण्ठ में छोटे मुक्ताओं के मध्य व्याघ्रनख है। कौस्तुभ है गले में। भाल पर बिखरी अलकों के मध्य कज्जल-बिन्दु है। थोड़ी अलकों को समेटकर उनमें मैया ने एक मयूरपिच्छ लगा दिया है। बड़े-बड़े लोचन अन्जनमण्डित हैं।

दोनों करों में गीली रेत लगी है। दोनों चरण आगे अर्धकुन्जित किये बैठा है। पूरे पदों पर, नितम्ब पर गीली रेत चिपकी है। स्थान-स्थान और वक्ष पर, कपोल पर भी रेत के कण लगे हैं। पुलिन पर बहुत-से बालकों के पदचिन्द हैं। गीली रेत पर, सूखी रेत में भी शतशः बालकों के खेलने के चिह्न हैं। रेत कहीं एकत्र है, कहीं कर-पदों से फैलायी अथवा बिखेरी गयी है। गीली रेत पर कहीं छोटे गड्डे हैं अथवा रेत की ढेरियाँ हैं। मैया इनके मध्य से ही चलती आयी है। उसने समीप आकर कन्धे पर कर रखकर पूछा है- ‘तू अकेला यहाँ क्या कर रहा है?’ ‘मैं?’ चौंककर कन्हाई ने मुख उठाया- नेत्र हर्ष से चमक उठे- ‘अरे, यह तो मैया है!’ मुख धूप से कुछ अरुणाभ हो उठा है। भाल पर, कपोलों पर नन्हें स्वेद-कण झलमला उठे हैं। मैया को देखकर यह झटपट उठ खड़ा हुआ है।

‘तू अकेला यहाँ कर क्या रहा है?’ मैया किञ्चित् स्मित के साथ पूछती है। ‘अकेला?’ श्याम एक बार सिर घुमाकर आसपास देखता है। उसे अब पता लगता है कि वह अकेला है। ये सब सखा-दाऊ दादा भी उसे छोड़कर चले गये? अकेला वह कैसे रह सकता है; किंतु अब तो मैया समीप आ गयी है। दोनों भुजाएँ मैया की गोद में जाने को उठा देता है। ‘तू कर क्या रहा था?’ मैया हँसती है। कन्हाई को अब कहाँ स्मरण है कि वह क्या बना रहा था। एक बार मुख झुकाकर गीली रेत की उस नन्हीं ढेरी को देखता है और फिर मैया के मुख की ओर देखता है दोनों भुजाएँ फैलाये।

श्याम के नेत्रों में उलाहना है, खीझ है- ‘तू कैसी मैया है कि स्वयं समझ नहीं लेती कि उसका लाल क्या बना रहा था। जब वह इतनी तन्मयता से इस महानिर्माण में लगा था तो दुर्ग-ग्राम, गाय-बैल, कपि-गज............... कुछ तो बना ही रहा था। अब उसे तो स्मरण नहीं। उसे तो मैया की गोद में चढ़ना है और मैया हँसती है। हँसती है और पूछती है।’ यह भी कोई बात है कि मैया उसे गोद में नहीं लेती और पूछती है। अब यह खीझने वाला है। अपनी ही भावना में तन्मय, अब तो मैया की गोद और सम्भवतः उसका अमृतजय ही इसे स्मरण है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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