कनक-कटोरा प्रातहीं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



कनक-कटोरा प्रातहीं, दधि घृत सु मिठाई।
खेलत खात गिरावहीं, झगरत दोउ भाई।
अरस परस चुटिया गहैं, बरजति है भाई।
महा ढीठ मानैं नहीं, कछु लहुर-बढ़ाई।
हँसि कै बोली रोहिनी, जसुमति मुसुकाई।
जगन्नाथ धरनीधरहिं, सूरज बलि जाई।।162।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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