कत हो कान्‍ह काहु कैं जात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी



कत हो कान्‍ह काहु कैं जात।
ये सब ढोठ गरब गोरस कैं, मुख सँभारि बोलति नहिं बात।
जोइ-जोइ रुचै सोइ तुम मोपै माँगि लेहु किन तात।
ज्‍यौं-ज्‍यौं बचन सुनौं मुख अमृत, त्‍यौं-त्‍यौं सुख पावत सब गात।
कैसी टेव परी इन गोपिनि, उरहन कैं तमस आवतिं प्रात।
सूर सुकत हठि दोष लगावतिं घरही को माखन नहिं खात।।308।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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