कटि किङ्किणि मृदु मधुर शद घण्टिका-विकासित -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव स्वरूप माधुरी

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राग काफी - ताल कहरवा

कटि किङ्किणि मृदु मधुर शद घण्टिका-विकासित।
अरुण चरण-नख दिव्य ज्योति से ब्रह्म प्रकाशित॥
मणिमय नूपुर चरण करत जग मोद-सुहासित।
पीतवसन असमोर्ध्व ज्योतिमय देह सुलासित॥
अनुपम अंग-सुगन्ध दिव्य सुर-मुनि-मन-हारी।
खड़े सुललित त्रिभङ्ग कल्पतरु-मूल-विहारी॥
साथ दिव्य-गुण-रूपमयी वृषभानु-कुमारी।
सदा अभिन्न, परम आराध्या राधा प्यारी॥
सखा-सुरभि-गोवत्स बन्धु-प्रिय माधव मनहर।
नन्द-यशोदा-नन्दन विश्व-विमोहन नटवर॥
हम सर्वथा अयोग्य, अनधिकारी, निकृष्टतर।
सहज दयावश करो हमें स्वीकार, मुरलिधर !॥
दो उन प्रेमी भक्तों के भक्तों की पद-रज।
जो सेवनरत नित्य प्रिया-प्रियतम-पद-पङ्कज॥
परम सुदुर्लभ, जिसे चाहते हैं उद्धव-‌अज।
नहीं चाहते भुक्ति-मुक्ति, उस पद-रज का तज॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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