कजरी कौ पय पियहु लाल, जासौं तेरी बेनि बढै़।
जैसैं देखि और ब्रज बालक, त्यौं बल-बैस चढै़।
यह सुनि कै हरि पीवन लागे, ज्यौं त्यौं लयौ लढै़।
अँचवत पय तातौ जब लाग्यौे, रोवत जोभि डढै़।
पुनि पीवत हीं कच टकटोरत, झूठहिं जननि रढै़।
सूर निरखि मुख हँसति जसोदा, सो सुख उर न कढै़।।174।।