कछु दिन ब्रज औरौ रहौ 2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


तीज तिहूँपुर प्रगटि है, हरि होरी है।
अपनी आन नरेस, अहो हरि होरी है।।
सुनि पग पग डफ डिमडिमी, हरि होरी है।
सोइ करिहै सब देस, अहो हरि होरी है।।
चौथि चहूँ दिसि चालिहै, हरि होरी है।
यह अपनौ इक नीति, अहो हरि होरी है।।
करै भावती नृपति कौ, हरि होरी है।
छाँड़ि सकुच कुलरीति, अहो हरि होरी है।।
पाँचैं परिमिति परिहरै, हरि होरी है।
चलै सकल इक चाल, अहो हरि होरी है।।
नारि पुरुष सादर करै, हरि होरी है।
बचनप्रीतिप्रतिपाल, अहा हरि होरी है।।
छठि छ राग रस रागिनी, हरि होरी है।
ताल तान बंधान, अहो हरि होरी है।।
चटुल चरित रतिनाथ के, हरि होरी है।
सीखत ह्वै अवधान, अहो हरि होरी है।।
सुनि सातै सब सजग ह्वै हरि होरी है।
सबनि मत्यौ मत एक, अहो हरि होरी है।।

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