कछु दिन ब्रज औरौ रहौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


कछु दिन ब्रज औरौ रहौ, हरि होरी है।
अब जिनि मथुरा जाहु, अहो हरि होरी है।।
परब करौ घर आपनै, हरि होरी है।
कुसल छेम निरबाहु, अहो हरि होरी है।।
पंद्रह तिथि भरि बरनिहौ, हरि होरी है।
सारद कृपा समाज, अहो हरि होरी है।।
फागुन मदन महीपती, हरि होरी है।
करियै इहिं बिधि राज, अहो हरि होरी है।।
परिवा पिय चलियै नहीं, हरि होरी है।
सब सुख कौ फल फाग, अहो हरि होरी है।।
प्रगट करौ यह जानि कै, हरि होरी है।
अंतर कौ अनुराग, अहो हरि होरी है।।
गनहु द्वैज दिन सोधि कै, हरि होरी है।
भूपति ह्वैहै काम, अहो हरि होरी है।।
सखि रेखा सिर तिलक दै, हरि होरी है।
सब कोउ करै प्रनाम, अहो हरि होरी है।।
कनकसिंहासन बैठिहै हरि होरी है।
जुवतिनि के उर आनि, अहो हरि होरी है।।
चिकुर चीर अंचल भुजा, हरि होरी है।
घूँघट आतप तानि, अहो हरि होरी है।।

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