कछु इक दिन औरौ रहौ 2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


पून्यौ पूरन प्रीति करि, हरि आए हरुआई।
बल भैया कौं छाँड़हू, फगुआ देउँ मँगाइ।।
मोहन पकरै करि मती, मुरली लई छंड़ाइ।
राधा सौं करि बीनती, दीजै हमहिं मँगाइ।।
नंद छिड़ावहु स्याम कौं, या जग मैं जस लेहु।
जसुमति धरि वृषभानु कै, फगुआ हमरौं देहु।।
जसुमति हँसि सब सखिनि स्यौ, राधे लिन्ही बोल।
मेवा मिश्री बहु रतन, दई सबनि भरि ओल।।
होरी हरषि हलाइ कै, मोहन झूलै डोल।
गावति सखी निसंक ह्वै, कहि कहि अमृत बोल।।
पाट सिंहासन बैठि कै, अरु अभिषेक कराइ।
राज करहु नित लाड़िले, 'सूरदास' बलि जाइ।।2915।।

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