कंस खल दलन, रन राम रावन हतन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग मारू



कंस खल दलन, रन राम रावन हतन, दीन दुख हरन गज मुक्तकारी।
नृपति चहुँ देस के बंदि जरासंध के, रैनि दिन रहत जिय दुखित भारी।।
सुनी जदुनाथ यह बात जब पथिक तै, धर्म सुत कै हृदय यह उपाई।
राजसू जज्ञ कौ कियौ आरंभ मैं, जानि कै नाथ तुमकौ सहाई।।
भीम अरजुन सहित विप्र कौ रूप धरि, हरि जरासंध सौ जुद्ध माँग्यौ।
दियौ उन पै कह्यौ तुम कोऊ राजसी, कपट करि बिप्र कौ स्वांग स्वाँग्यौ।।
हरि कह्यौ भीम अरजुन दोऊ सुभट ये, कृष्न मैं देखि लोचन उघारी।
बचन जो कह्यौ प्रतिपाल ताकौ करौ, कै सभा माहि पत जाहु हारी।।
पार्थ तुम नहीं समरत्थ मम जुद्ध कौ, भीम सौ लरौ यह कहि सुनाई।
बीस औ सप्त दिन यौ गदाजुद्ध कियौ, दोउ बलवंत कोउ लियो न जाई।।
स्याम तृन चीरि दिखराइ दियौ भीम कौ, भीम तब हरषि ताकौ पछारयौ।
जरासंध की संधि जोरयौ हूतौ, भीम ता संधि कौ चीरि डारयौ।।
नृपनि कौ छोरि सहदेव कौ राज दियौ, देव नर सकल जय जय उचारयौ।
‘सूर’ प्रभु भीम अरजुन सहित तहाँ तै धर्मसुत देस कौ पुनि सिधारयौ।। 4215।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः