कंस-हेतु हरि जन्‍म लियौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


कंस-हेतु हरि जन्‍म लियौ।
पापहिं पाप धरा भई भारी, तब सुरनि पुकार कियौ।।
सेस सैन जहँ रमा संग मिलि, तहँ अकास भई बानी।
असुर मारि भुव-मार उतारौं, गोकुल प्रगटौं आनी।।
गर्भ देवकी कैं तनु धरिहौं, जसुमति कौ पय पीहौं।
पूरब तप बहु कियौ कष्‍ट करि, इनकौ बहुत रिनी हौं।।
यह बानी कहि सूर सुरनि कौं, अब कृष्ना अवतार।
कह्यौ सबनि ब्रज जन्‍म लेहु सँग, मेरैं करहु बिहार।।1604।। 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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