कंसराइ जिय सोच परी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


कंसराइ जिय सोच परी।
कहा करौं, काकौं ब्रज पठवौं, बिधना कहा करी।
बारम्बार बिचारत मन मैं, नींद भूख बिसरी।
सूर बुलाइ पूतना सौं कह्यौ, करु न बिलंब घरी।।48।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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