और सखा सँग लिये कन्हाई।
आपुहिं निकसि गए आगे कौं, मारग रीक्यौ जाई।।
इहिं अंतर जुवती सब आई बन लाग्यौ कछु भारी।
पाछैं जुवति रहीं तिन टेरति, अबहिं गई तुम हारी।।
तरुनी जुरि इक संग भई, इत उत चलीं निहारत।
सूरदास-प्रभु सखा लिये सँग, ठाढ़े यहै बिचारत।।1501।।