और सकल अंगनि तै ऊधौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग घनाश्री


 
और सकल अंगनि तै ऊधौ, अँखियौ अधिक दुखारी।
अतिहिं पिरातिं सिरातिं न कबहूँ, बहुत जतन करी हारी।।
मग जोवत पलकौ नहिं लावतिं, विरह विकल भई भारी।
भरि गइ विरह बयारि दरस बिनु, निसि दिन रहतिं उघारी।।
ते अलि अब ये ज्ञान सलाकै, क्यौ सहि सकतिं तिहारी।
'सूर' सु अंजन आँजि रूप रस, आरति हरहु हमारी।।3570।।

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