और नंद माँगौ कछु हमसौं।
जौ चाहौ सो देउँ तुरत हीं, कहत सबै गोपनि सौं।।
बल मोहन दोऊ सुत तेरे, कुसल सदा ये रहिहैं।
इनकौ कह्यौ करत तुम रहियौ, जब जोई ये कहिहैं।।
सेवा बहुत करी तुम मेरी, अब तुम सब घर जाहु।
भोग प्रसाद लेहु कछु मेरौ, गोप सबै मिलि खाहु।।
सुपनैं मैं ही कह्यौ स्याम सौं, करौ हमारी पूजा।
सुरपति कौन बापुरौ, मोतैं और देव नहिं दूजा।।
इंद्र आइ बरसै जो ब्रज पर, तुम जनि जाहु डराइ।
सुनहु सूर सुत कान्ह तुम्हारौ कहिहै मोहिं सुनाइ।।843।।