ओल्हर आई हो घन घटा -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग केदारौ




ओल्हर आई हो घन घटा हिडोरे झूलत है स्याम स्याम।
कंचन पभ जरित डाड़ी पटुली धरनोखारी पीत बसन फहरात भृकुटी जितै कोटि काम।।
बनी है अद्भुत जोरी उपमा को दीजै कोरी कोटा देत सब मिलि बृज की बाम।
आनंद बढ़ी ठौर ठौर नाचत है मीर मीर इह छवि निरखि ‘सूर’ पायौ है सुप धाम।। 116 ।।

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