ऐसौ जिय न धरौ रघुराइ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग गूजरी
जानकी–वचन श्रीराम के प्रति


  
ऐसौ जिय न धरौ रघुराइ ।
तुम सौ प्रभु तजि मों सी दासी, अनत न कहूँ समाइ।
तुम्‍हरौ रूप अनूप भानु ज्‍यौं, जब नैननि भरि देखौं।
ता छिन-हृदय-कमल-प्रफुलित ह्वै, जनम सफल करि लेखौं।
तुम्‍हरैं चरन-कमल सुख-सागर, यह व्रत हौं प्रतिपलिहौं।
सूर सकल सुख छाँडि आपनौ, बन-विपदा-संग चलिहों॥35॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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