ऐसै करत अनेक जन्‍म गए -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री




 
ऐसै करत अनेक जन्‍म गए, मन संतोष न पायौ।
दिन-दिन अधिक दुरासा लाग्‍यौ, सकल लोक भ्रमि आयौ।
सुनि-सुनि स्‍वर्ग, रसातल, भूतल, तहाँ-तहाँ उठि घायौ।
काम-क्रोध-मद-लोभ अगिनि तै कहूँ न जरत बुझायो।
सुत-तनया-बनिता-विनोद-रस, इहिं जुर-जरनि जरायौ।
मैं अग्‍यान अकुलाइ, अधिक लै, जरत माँझ घृत नायौ।
भ्रमि-भ्रमि अब हारयौ हित अपनैं, दैखि अनल जग छायौ।
सूरदास-प्रभु तुम्‍हारी कृपा बिनु, कैसैं जात नसायौं!।।154।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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