ऐसे समय जो हरि जू आवहिं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


ऐसे समय जो हरि जू आवहिं।
निरखि निरखि वह रूप मनोहर, नैन बहुत सुख पावहिं।।
तैसिय स्याम घटा घन घोरनि, बिच बगपाँति दिखावहिं।
तैसेइ मोर कुलाहल सुनि सुनि, हरषि हिंडोरनि गावहिं।।
तैसीयै दमकति दामिनि अरु, मुरलि मलार बजावहिं।
कबहुँक संग जु हिलि मिलि खेलहिं, कबहुँक कुज बुलावहिं।।
बिछुरे प्रान रहत नहिं घट मैं, सो पुनि आनि जियावहिं।
अबकै चलत जानि ‘सूरज’ प्रभु, सब पहिलै उठि धावहिं।। 3387।।

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