ऐसी सुनियत हिरदै माहँ।
याही में सब बात बूझिवी, चतुर सिरोमनि नाह।।
आवन कह्यो बहुत दिन लाए, करी पाछिली गाह।
हमहिं छाँड़ि कुबिजहिं मन दीन्हौ, मेटि वेद की राह।।
एते पर लिख जोग पठावत, सिद्धि बतावत थाह।
‘सूर’ स्याम अब ब्रज किन आबहु, दिन दस मानी साह।।4032।।