ऐसी री निधरक तू राधा।
ब्रज घर घर बन बन डोली तू, नहीं कियो कहुँ बाधा।।
मोकौ संग बोलि तू लेती, करनी करी अगाधा।
प्रातहि तै तू अब आवति है रैनि जाम लगि आधा।।
पायौ हार किधो पुनि नाहीं, देखौ री मोहि साधा।
आँचर हेरि, ग्रीव दिखरायो, दामनि मोल उपाधा।।
मन मन कहति बात यह मिलवति, गई स्यामअवराधा।
'सूर' सखी लखि लीन्ही ताकौ, यह तो है कछु बाधा।।2007।।