ऐसी कहौ बनिज कौं अटकीं।
मुख-मुख हेरि तरुनि मुसुक्यानी, नैन-सैन दै-दै सब मटकीं।।
हमहूँ कह्यौ दान दधि कौ कह, माँगत कुँवर कन्हाई।
अब लौं कहा मौन धरि बैठे, तबही नहीं सुनाई।।
हँसि बृषभानु-सुता तब बोली, कहा बनिज हम पास।
सूर स्याम लेखौ करि लीजै, जाहिं सबै ब्रजपास।।1525।।