एक हार मोहिं कहा दिखाबति।
नख सिख लौं अँग-अंग निहारहु, ये सब कतहिं दुरावति।।
मोतिनि माल जराइ कौ टोकौ, करनफूल नकबेसरि।
कंठसिरी, दुलरी तिलरी तर, और हार इक नौसरि।।
सुभग हुमेल कटाव की, अँगिया, नगनि जरित की चौकी।
बहुँटा, कर-कंकन, बाजूबँद, एते पर है तौकी।।
छुद्रघंटिका पग नूपुर जेहरि, बिछिया सब लेखौ।
सहज अंग-सोभा अब न्यारी, कहत सूर ये देखौ।।1540।।