एक द्यौस कुंजनि मैं माई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


एक द्यौस कुंजनि मैं माई।
नाना कुसुम लेइ अपनै कर, दिए मोहिं सो सुरति न जाई।।
इतने मैं घन गरजि वृष्टि करी, तनु भीज्यौ मो भई जुड़ाई।
कंपत देखि उढाइ पीत पट, लै करुनामय कंठ लगाई।।
कहँ वह प्रीति रीति मोहन की, कहँ अब धौं एती निठुराई।
अब बलबीर ‘सूर’ प्रभु सखि री, मधुबन वसि सब रति बिसराई।। 3384।।

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