एक गाउँ कै बास सखी हौं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


एक गाउँ कै बास सखी हौं, कैसैं धीर धरौं।
लोचन मधुप अटक नहिं मानत, जद्यपि जतन करौं।।
वै इहिं मग नित प्रति आबत हैं, हौं दधि लै निकरौं।
पुलकित रोम-रोम, गदगद सुर, आनंद उमँग भरौं।।
पल अंतर चलि जात, कलप बर बिरहा अनल जरौं।
सूर सकुच कुल-कानि कहाँ लगि, आरज-पथहिं डरौं।।1665।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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