एकै संग हाल नंदलाल और गुलाल दोऊ,
दृगन गये ते भरी आनंद मढै नहीं ।
धोय धोय हारी पदमाकर तिहारी सौंह,
अब तो उपाय एकौ चित्त मे चढै नहीं ।
कैसी करूँ कहाँ जाऊँ कासे कहौं कौन सुनै,
कोऊ तो निकारो जासों दरद बढै नहीं ।
एरी! मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सों,
कढिगो अबीर पै अहीर को कढै नहीं ।