ऊधौ हम ऐसी नहीं जानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग सोरठ


ऊधौ हम ऐसी नहीं जानी।
सुत कै हेत मरम नहिं पायौ, प्रगटे सारँगपानी।।
निसि वासर छतिया सौ लाई, बालक लीला गाऊँ।
ऐसे कबहुँ भाग होहिगे, बहुरौ गोद खिलाऊँ।।
को अब ग्वाल सखा सँग लीन्हे, साँझ समै व्रज आवै।
को अब चोरि चोरि दधि खैहै, मैया कौन बुलावै।।
विदरति नाहि वज्र की छाती, हरि वियोग क्यौ सहियै।
‘सूरदास’ अब नदनँदन बिनु, कहौ कौन विधि रहियै।।4085।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः