ऊधौ हमहि न जोग सिखैयै।
जिहिं उपदेस मिलै हरि हमकौ, सौ व्रत नेम बतैयै।।
मुक्ति रहौ घर बैठि आपने, निर्गुन सुनि दुख पैयै।
जिहि सिर केस कुसुम भरि गूँदे, कैसे भस्म चढैयै।।
जानि जानि सब मगन भई है, आपुन आपु लखैयै।
'सूरदास' प्रभु सुनहु नवौ निधि, बहुरि कि इहि ब्रज अइयै।।3692।।