ऊधौ यहै बिचार गहौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


ऊधौ यहै विचार गहौ।
कै तन गऐ भलौ मानै, कै हरि ब्रज आइ रहौ।।
कानन देह बिरह दौ लागी, इंद्री जीव जरै।
बुझै सयामबन प्रेम कमल सुख, मुरली बूँद परैं।।
चरन सरोवर माहि मीत मन, रहत एकरस रीति।
तुम निरगुन बारु पर डारत, ‘सूर’ कौन यह नीति।।3824।।

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